विशेष / 2023-11-30 19:43:44

मौर्यकाल से अबतक संस्कृतियों का जीवंत चित्रण है सोनपुर मेला (विश्वनाथ सिंह)

हरिहर क्षेत्र.....मौर्य काल (ई पू 323)में यह मेला अपने पूर्ण यौवन पर था।बाद के भी कई यूरोपीयन विद्वानो जैसे जाॅन मार्शल, मिन्डेन विल्सन तथा मार्कसैण्ड आदि ने अपनी रचनाओं में हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले की प्राचीनता पर प्रकाश डाला है।ब्रिटिश लेखक मार्कसैण्ड ने अपनी पुस्तक "ट्रैवल ऑन माय एलिफैन्ट "में सोनपुर मेले के धार्मिक और सांस्कृतिक तथा व्यापारिक महत्व की चर्चा की है।श्री सैण्ड वर्ष 1989 में हाथी पर बैठकर कोणार्क से कोनहारा घाट तक की यात्रा की थी।वह मेले के हाथी बाजार में अपना शिविर डाला था।उनके पुस्तक के अनुसार औरंगजेब के समय में कतर और अरब देशों से लोग हाथी का व्यापार करने यहाँ आते थे। चन्द्रगुप्त के समय में सोनपुर मेला जंगी हाथियों का सबसे बड़ा मेला था।बादशाह अकबर के सिपहसालार राजा मान सिंह ने पाटलिपुत्र जाने के क्रम में इस मेले में कैम्प किया था।वे जिस हिस्से में ठहरे थे वह सर्वे में बाग राजा मान सिंह के रूप में आज भी अंकित है।अकबर के पास सात हजार हाथी थे।आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के पास एक सफेद हाथी था जिसे अकबर शाह द्वितीय ने एक व्यापारी से खरीदा था।उस समय बहादुर शाह जफर युवराज थे।सफेद हाथी का नाम "मुल्ला बख्श" था।अकबर के बारे कहा जाता है कि वह सोनपुर मेला अवधि में यहां रहकर मनचाहे हाथी और घोड़ा खरीद कर ले जाता था।चन्द्रगुप्त ने भी सेल्यूकस को 500 हाथी हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला से खरीद कर दिये थे।वह सभी हाथी बेहद समझदार और समर्पण की भावना रखने वाले थे।भारतीय इतिहास के गौरव पुरुष क्षत्रपति शिवाजी कार्तिक पूर्णिमा के समय हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला के अवसर पर अपने गज एवं अश्वारोही विशेषज्ञों के साथ आकर बाबा हरिहर नाथ का दर्शन कर अच्छे नस्ल के हाथी और घोड़े का क्रय कर सेना के उपयोग के लिए अपने साथ ले जाते थे। हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले से झांसी की रानी,महाराणा प्रताप, गुरू गोविंद सिंह जैसे योद्धा का भी इतिहास जुड़ा है। 1857 ई में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम सूत्रधार राष्ट्रीय वीर पुरुष बाबू वीर कुंवर सिंह ने अंग्रेजों की गुलामी से भारत को मुक्त कराने के लिए इसी हरिहर क्षेत्र मेला में अपनी सामरिक रणनीति तय की थी और यहां से युद्ध में काम आने लायक घोड़े खरीदे थे।वीर कुंवर सिंह की अध्यक्षता में अंग्रेजों के विरुद्ध देश प्रेमी रजवारों की यहां बैठक हुई थी,जिसमें सिपाही विरोध रणनीति तय की गई थी।1852 ई में खरहौल फैक्ट्री के सहायक प्रबंधक एम विल्सन ने अपनी पुस्तक Memories of Bihar (बिहार संस्मरण)में यह लिखा है कि हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला के अवसर पर स्थानीय नील किसानों द्वारा आम के वृक्षों बगीचे में एक बड़ा शिविर स्थापित किया जाता था।जहां प्रतिदिन दौड़,खेल - कूद, पोलो,टेनिस और नृत्य आदि का आयोजन किया जाता था। 23 नवंबर 1871 को भारत के वायसराय लार्ड मेयर तथा नेपाल के महाराणा जंगबहादुर का शानदार अलग शाही दरबार लगा।दोनो के बीच बैठक हुई। भारत-नेपाल मित्र हुए, 26 नवंबर 1873 को वायसराय लार्ड नार्थ ब्रिक और जंगबहादुर पुनः मैत्री को मजबूत करने हेतु हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला आये।इसको नेस्टर ने अपने संस्मरण में लिखा है।19 नवंबर 1877 को बंगाल के गवर्नर एशेल ईडेन ने महाराजा महीप सिंह के पुत्र भूप सिंह को हीरे की अंगूठी दिया। ई सन् 1881 में लार्ड मार्निग्टन ने इस मेले की ख्याति सुनकर अपने विशेष दूत को मेला अवलोकन हेतु भेजा और प्रभावित होकर मन्दिर को भूमि दिया तथा मेला विकास का कई काम किया।हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला में हीं 1884 में बी एण्ड डब्ल्यू रेलवे के इंजीनियर कौनोट ने गंडक नदी पर रेल पुल बनाने की योजना बनाई। सन् 1885 में गवर्नर रीवर टामसन इसकी नींव रखी ।सन् 1887 में लार्ड डफरिन ने इस पुल का उद्घाटन किया।इस तरह लगभग दो हजार वर्ष से अलग रहे लोगों का संगम इसी पुल के माध्यम से हुआ। हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले में 8 और 9 नवंबर 1919 को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का प्रथम अधिवेशन हुआ। ई सन् 1921 में प्रिन्स ऑफ वेल्स के भारत आगमन के क्रम में बिहार दौरा के समय सोनपुर के युवकों ने उन्हें काला झण्डा दिखाया था।बौखलाकर उसके अधिनस्थ एस.पी. पार्किन ने गांधी स्वराज आश्रम में रखे गीता,रामायण महाभारत आदि धर्म ग्रंथ निकाल कर सड़क पर फेक दिया और जला डाला। मेले का इतिहास गौरवान्वित करता है और करता रहेगा लेकिन दुर्भाग्य है कि नये - नये कानून रूपी धारदार तलवार एक एक कर हरिहर क्षेत्र मेले को कत्ल करते चला जा रहा है। हाथी बाजार और चिड़िया बाजार वर्ष 2017 से सपना हो गया । भारत सरकार और राज्य सरकार ने इस ऐतिहासिक पशु मेले की अस्तित्व को बचाने का कोई प्रयास तक नहीं किया।17 नवंबर 1929 को हरिहरनाथ मन्दिर प्रांगण में "बिहार राज्य किसान सभा" की स्थापना हुई। बैठक की अध्यक्षता स्वामी सहजानन्द सरस्वती किए थे।1575 में शहंशाह अकबर जब हाजीपुर पर चढ़ाई किया तो डेरा यहीं रखा था।हरिहर क्षेत्र सोनपुर में 20वीं सदी में गुलाब बाई महज 10 वर्ष की उम्र में "नदी नाले न जाऊं श्याम पईंया पड़ूं" गाकर श्रोताओ का दिल जीत ली थी।जुलाई 13, वर्ष 1996 की मृत्यु के पूर्व वर्षों तक वह बाई इस मेले को आकर्षण देती रही।1908 में सोनपुर मेला में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक महत्वपूर्ण बैठक खान बहादुर नकाब सरफराज हुसैन की अध्यक्षता मे हुई थी।इस बैठक में बिहार प्रांतीय कांग्रेस की स्थापना की गई थी।हसन इमाम इसके अध्यक्ष चुने गए। उस वक्त बिहार बंगाल प्रांत का हिस्सा था। भिखारी ठाकुर के "विदेशिया" और "बेटी बेचवा" नाटक को इसी हरिहर क्षेत्र मेले से ख्याति मिली।इसका मंचन अभी भी पर्यटन विभाग तथा सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के पंडाल से प्रायः मेला अवधि में सरकारी स्तर पर कराया जाता है।

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