मिथिला की सांस्कृतिक धरोहर पर्व के रूप में सामा चकेबा, समदाउन विदाई गीत से जुदाई। (कविता झा)

कोलकाता....वर्षों पुरानी व्यवस्था को निभाने में हमलोगों को खुशी होती है और यही वजह है कि मिथिला -बंगाल की सामान्य व्यवहार,संस्कृति में समानताएं देखी जाती हैं।सामा-चकेबा का खेल आज भी मिथिलांचल तथा बंगाल के क्षेत्र में काफी उल्लास के साथ बहनें अपने भाइयों की सुदीर्घ जीवन व समृद्धि के लिए लयबद्ध हो कर समर्पित करती है जिसमें 'बहन सामा,भाई चकेबा,चुगला,,वृंदावन,जोते हुए खेत की चर्चा हास-परिहास के साथ गीत में समयोचित कर,विधि विधान से यह खेल बहने आपस मे खेलती है और आज कार्तिक पूर्णिमा की रात चांद को साक्षी मानकर,धान खेत में इन मूर्तियों को विसर्जित करने से पहले मिथिलांचल की गायकी की विदाई गीत समदाउन गायन के साथ किया जाता है। यह जानकारी देते हुए विदुषी प्रभावती चौधरी,डॉ रानी, रीता हजारी, जयंती झा,प्रभा मिश्रा समेत मिथिलांचल की ललनाओं ने हमारे संवाददाता को बताया कि मिथिलांचल, सीमांचल, बंगाल के क्षेत्रों में सामा-चकेबा का वृहद आयोजन किया जाता रहा है।छठ पर्व के बाद से कार्तिक पूर्णिमा की धवल चांदनी के समय ही यह पर्व समापन होता है। आज दरभंगा, मधुबनी, छपरा समस्तीपुर, भागलपुर, पुर्णिया, सहरसा, खगड़िया समेत बंगाल के विभिन्न क्षेत्रों में सामा-चकेबा की धूम रही।

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