व्यंग्य / 2023-08-21 13:06:24

मुंह, माईक और मोबाइल मीडिया (व्यंग्य) (विनोद कुमार विक्की)

(व्यंग्य)....देश में गरीबी घटे ना घटे बेरोज़गारी जरूर घट रही है।या तो लोग बीएड, डीएलएड,टैट की डिग्री लेकर शिक्षक बन रहे या फिर माईक थाम मुंह उठा कर मोबाइल पत्रकार बनने को आमदा है।बचपन से ही मुझे पत्रकार बनने का शौक था। शौक नहीं साहब नशा कहिए नशा...मेरे अंदर पत्रकार बनने के सभी लक्षण प्राकृतिक रूप से कूट-कूट कर विद्यमान था।दूसरे के फटे में टांग डालने का नैसर्गिक गुण हो अथवा इधर की बात उधर करने की संचार कला, मेरे धमनियों और शिराओं में प्रवाहमान रहता था।खिड़कियों या दरवाजे से तांक झांक करते हुए मुहल्ले का शायद ही कोई घर बचा हो जहां मेरी कुदृष्टि ना पड़ी हो।गांव के प्रधान या थानेदार को भी गांव या ग्रामीणों की खैर खबर ना थी जितना मैं महज दस साल की अल्पायु में ही जान गया था।इस शौक के कारण मुझे यह ज्ञात हो गया किस परिवार में पति-पत्नी और वो का मामला चल रहा है,किस घर में सास बहू प्रकरण परवान पर है। कहां आर्थिक तंगी चल रही है और कहां मलाई काटा जा रहा है।चुगली, गाली से लेकर खेत में छुपकर बीड़ी,सिगरेट सुलगाने, जुआ खेलने वाले नाबालिग लौंडों के सदकृत्य,नोट्स की आड़ में प्रेम पत्र का आदान-प्रदान करने वाली बालिकाओं की गतिविधि,जेब खर्च वाली, आय से अधिक खर्च करने वाले बिगड़ैल बच्चों की फिजूलखर्ची आदि की प्रथम सूचना उसके अभिभावक के कानों में मेरे ही माध्यम से पहुंचती थी।नाम प्रकट ना करने कि शर्त पर संचारित मेरी यह गुप्त सेवा नब्बे के दशक में थ्री-जी,फोर जी तकनीक से भी द्रूत सेवा मानी जाती थी।परम आनंद की प्राप्ति के उद्देश्य मात्र से फ्रीलांस के तौर पर मेरी यह सेवा बिल्कुल निःशुल्क हुआ करती थी।हालांकि कई बार गोपनीयता भंग होने की स्थिति में अपने इस सेवा के कारण बिना साबुन पानी के धुलाई का सुख भी बचपन में खूब प्राप्त हुआ है।बहरहाल, प्राकृतिक पत्रकारिता में मै जितना आसक्त था पढ़ाई-लिखाई में उतना ही विरक्त था।पिताजी के जूते और मास्साब की छड़ी के संयुक्त दबाव का सद्परिणाम ही है कि ग्रेजुएट होने की उम्र में जैसे-तैसे बौद्धिक रूप से नन-मैट्रिक होने की शैक्षणिक योग्यता हासिल कर पाया। संघर्ष के दिनों में उचित डिग्री के अभाव में नौकरी का अभाव जीवन में सदैव बना रहा।अपने अनुभव के आधार पर कई समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों के चौखट पर पत्रकार बनने का जज़्बा दिखाया किंतु डिग्री ना दिखा पाने की स्थिति में रिपोर्टर तो क्या वेटर तक का आफर नहीं मिला।लिख लोढ़ा पत्थर की पढं पत्थर की स्थिति एक पत्रकारिता विश्वविद्यालय से डिग्री ले पाना मेरे लिए मंगल पर पानी खोजने से भी दुरूह था।थक हार कर रिपोर्टर बनने की इच्छा को फेफड़ों में दबा कर रोजी रोटी की जुगाड़ में लग गया।किंतु एक दिन टीवी पर एक इंजीनियर को यूट्यूब पत्रकारिता करते देखा।जबरिया मुंह के पास माईक रख चिल्ला-चिल्ला कर प्रश्न पूछने का उसका तरीका मुझे भा गया।चमड़े की जुबान से सिर्फ और सिर्फ सवाल ही तो करना था।इस ज्ञान की प्राप्ति और यूट्यूबर पत्रकारों की छिछोरपंथी देख मेरे अंदर दफन पत्रकार की आत्मा जाग गई। फिर क्या बिना वक्त गंवाए मैने यूट्यूब पर 'मौके पर भौंके' नामक न्यूज चैनल लांच कर दिया। बारंबार व्यक्तिगत अनुरोध पर मौके पर भौंके न्यूज चैनल के लिए दो वर्षों में पौने दो दर्जन सब्सक्राइबर भी बन गए।अब मैं मोबाइल और माईक लेकर जहां तहां मुंह मारने लगा।जब जिस पर हो आरोप लगा देता।मानव से मुर्गी तक की खबरों से संबंधित विडियो न्यूज चैनल पर नियमित प्रसारित करता रहता।बात का बतंगड़ बनाने में मै सिद्ध हस्त हो चुका हूं।बिना डिग्री वाला मोबाइल रिपोर्टर होने के बावजूद लोग मेरे रिपोर्टिंग से खौफजदा हैं।कई बार जबरदस्ती घुस-घुस कर आरोप लगाने या चिल्लाने के कारण दबंग ठेकेदार, दलाल आदि के हाथों आफलाइन ठुकाई भी हो चुकी है। मेरे सजग पत्रकारिता और लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जितने मेरे चैनल के व्युअर्स नहीं है उससे ज्यादा लोकल थाना में मेरे खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हुई है।हाजत में पुलिस वालों ने तबियत से मेरे हड्डियों को तोड़ा किंतु मेरा हौसला नहीं तोड़ पाए।पत्रकारिता के प्रति मेरा जोश और जज़्बा आज भी बरकरार है।जानकारी मिलने भर की देर है,दूसरे के फटे में टांग डालने आज भी माईक और मोबाइल के साथ घटनास्थल पर पहुंच ही जाता हूं।

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